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श्रमण सूक्त
२१७
सव्वमेय वइस्सामि | सव्वमेय त्ति नो वए । ।
मै यह सब कह दूंगा यह सर्व है - ज्यो-का-त्यो है, मुमुक्षु इस प्रकार न बोले ।
(द ७ ४४ क, ख )
२१८
अणुवी सव्व सव्वत्थ । एव भासेज्ज पन्नव ।।
२१६
इम गेह इम मुच,
पणिय नो वियागरे ।
सर्वत्र - सब प्रसगो मे सर्व वचन - विधियो का अनुचिन्तन कर प्रज्ञावान् पुरुष जैसे पाप का आगमन न हो वैसे बोले ।
(द ७ ४४ ग, घ )
४३८
(द ७४५ ग, घ )
इस पण्य-वस्तु को खरीद लो इसको बेच डालो - साधु ऐसी भाषा न बोले ।