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श्रमण सूक्त
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२०३ होले गोले वसुले त्ति, इत्थिय नेवमालवे।
(द ७ १६ ग, घ) हे होले !, हे गोले ।, हे वृषले। इस प्रकार स्त्रियो को आमत्रित न करे।
२०४ होल गोल वसुले ति, पुरिस नेवमालवे।
(द ७ १६ ग, घ) __ हे होल |, हे गोल ! हे वृषल !-इस प्रकार पुरुष को आमत्रित न करे।
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२०५ जाव ण न विजाणेज्जा, ताव जाइ त्ति आलवे।
(द ७ स ग, घ) स्त्री है या पुरुष-ऐसा निश्चित रूप से न जान ले तबतक 'जाति' शब्द से बोले।