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श्रमण सूक्त
१६६ उउप्पसन्ने विमले व चदिमा सिद्धि विमाणाइ उवेति ताइणो । (द ६ ६८ ग, घ )
त्राता मुनि शरद ऋतु के चन्द्रमा की तरह मल-रहित होकर सिद्धि या सौधर्मावतसक आदि विमानो को प्राप्त करते हैं ।
१६७ असच्चामोस सच्च च गिर भासेज्ज पन्नव ।
(द ७ ३क, घ)
प्रज्ञावान् मुनि असत्याऽमृषा (व्यवहार-भाषा) और सत्य भाषा बोले ।
१६८
तम्हा सो पुट्ठो पावेण, कि पुण जो मुस वए ।
(द ७ ५ ग, घ )
जो सत्य लगने वाली असत्य भाषा बोलता है उससे भी वह पाप से स्पृष्ट होता है तो फिर उसकी तो बात ही क्या जो साक्षात् मृषा-मिथ्या बोलता है ।
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