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गभीरविजया एए पाणा दुप्पडिलेहगा।
(द ६ ५५ क, ख) आसन्दी आदि गम्भीर-छिन्द्रन वाले होते हैं। इनमें प्राणियो का प्रतिलेखन करना कठिन है।
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१८० आसदीपलियका य एयमट्ट विवज्जिया।
(द ६ ५५ ग, घ) इसलिए आसन्दी, पलग आदि पर बैठना या सोना निर्ग्रन्थ के लिए वर्जित है।
१८१ विवत्ती बमचेरस्स।
(द ६ ५७ क)
गृहस्थ के घर मे बैठने से (१) ब्रह्मचर्य का विनाश होता है।
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१८२ पाणाण अवहे वहो।
(द६ ५७ ख) (२) प्राणियों का अवधकाल मे वध होता है।
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