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श्रमण सूक्त
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૧૭૬ पच्छाकम्म पुरेकम्म सिया तत्थ न कप्पई।
(द ६ ५२ क, ख) गृहस्थ के बर्तन मे भोजन करने मे पश्चात् कर्म और 'पुर कर्म की संभावना है। अत वह निर्ग्रन्थ के लिए कल्प्य नहीं है।
१७७ एयमट्ट न भुजति निग्गथा गिहिभायणे।
(द ६ ५२ ग, घ) एतदर्थ निर्ग्रन्थ गृहस्थ के बर्तन में भोजन नहीं करते।
१७८ अणायरियमज्जाण आसइत्तु सइत्तु वा।
(द ६ ५३ ग, घ) आर्यों के लिए आसन्दी, पलग, मञ्च और आसालक पर बैठना या सोना अनाचीर्ण है।
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