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श्रमण सूक्त
१७० अकप्पिय न इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पिय।
(द ६ ४७ ग, घ) मुनि अकल्पनीय (पिण्ड, शय्या-वसति, वस्त्र और पात्र) को ग्रहण करने की इच्छा न करे। अल्पनीय ग्रहण करे।
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१७१ पिड सेज्ज च वत्थ च चउत्थ पायमेव य। अकप्पिय न इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पिय ।।
(द ६ ४७) मुनि अकल्पनीय पिण्ड शय्या-वसति, वस्त्र और पात्र को ग्रहण करने की इच्छा न करे किन्तु कल्पनीय ग्रहण करे।
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वह ते समणुजाणति।
(द ६ ४८ ग) (जो मुनि नित्यान, क्रीत, औद्देसिक और आहत आहार ग्रहण करते है) वे प्राणिवध का अनुमोदन करते हैं।
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