________________
श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
-
-
૧૬૬ तसकाय विहिसतो हिसई उ तयस्सिए।
-
वसकाय की हिंसा करता हुआ मनुष्य उसके आश्रित (अनेक त्रस-स्थावर) प्राणियों की हिंसा करता है।
-
१६७ दोस दुग्गइवड्डण।
(द ६ ४५ ख) त्रसकाय के समारभ को दुर्गति-वर्धक दोष जाने।
૧૬ तसकायसमारभ जावज्जीवाए वज्जए।
(द ६ ४५ ग, घ) मुनि जीवन-पर्यंत त्रसकाय के समारभ का वर्जन करे।
૧૬૬ ताइ तु विवज्जतो सजम अणुपालए।
(द६ ४६ ग, घ) जो अकल्पनीय वस्तु हो उसका वर्जन करता हुआ मुनि संयम का पालन करे।
४२३