Book Title: Shraman Sukt
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati Samsthan

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Page 434
________________ श्रमण सूक्त १८३ वणीमगपडिग्घाओ । (३) भिक्षाचरो के अन्तराय होता है । १८४ पडिकोहो अगारिण । (४) घरवालो को क्रोध उत्पन्न होता है। १८५ अगुत्ती बभचेरस्स । (५) ब्रह्मचर्य असुरक्षित होता है । १८६ इत्थीओ यावि सकण । १८७ वोक्कतो होइ आयारो ढो हवइ सजमो । (द ६ ५७ घ) (द ६ ५७ ग) (६) स्त्री के प्रति शका उत्पन्न होती है। ४२८ (द ६ ५८ क ) (द ६ ५८ ख ) (द ६ ६० ग, घ ) जो साधु स्नान करने की अभिलाषा करता है उसके आचार का उल्लघन होता है और उसका सयम परित्यक्त होता है।

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