________________
श्रमण सूक्त
-
-
१३५ न सो परिग्गहो वुत्तो मुच्छा परिग्गहो वुत्तो।
(द ६ २० क, ग)
--
मुनि के वस्त्र, पात्र आदि को परिग्रह नहीं कहा है। मूर्छा को परिग्रह कहा है।
१३६
सव्वत्थुवहिणा बुद्धा सरक्खणपरिग्गहे।
(द ६
२१ क, ख)
बुद्ध पुरुष सयम की रक्षा के निमित्त ही उपाधि ग्रहण करते हैं।
१३७ अहो निच्च तवोकम्म सव्वबुद्धेहि वण्णिय।
(द ६ २२ क, ख) आश्चर्य है कि सभी बुद्ध पुरुषो ने श्रमणो के लिए नित्य तप कर्म का उपदेश दिया है।
४१४
-