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१३८ जा य लज्जासमा वित्ती एगभत्तं च भोयण।
(द६ २२ ग, घ) उन्होने सयम के अनुकूल वृत्ति और देहपालन के लिए एक बार भोजन करने का उपदेश दिया है।
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१३६ जाइ राओ अपासतो कहमेसणिय चरे?
(द ६ २३ ग, घ) जो वस और स्थावर सूक्ष्म प्राणी हैं उन्हें रात्रि मे नहीं देखा जा सकता। निर्ग्रन्थ रात्रि मे एषणा-चर्या कैसे कर सकता है?
१४० दिया ताइ विवज्जेज्जा राओ तत्थ कह चरे?
(द६ २४ ग, घ) मुनि दिन मे जीवाकुल मार्ग आदि का विवर्जन कर सकता है पर रात में ऐसा करना शक्य नहीं है। इसलिए निम्रन्थ रात को भिक्षा के लिए कैसे जा सकता है?
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