________________
श्रमण सूक्त
१५५ सावज्जबहुल चेय नेय ताईहि सेविय |
(द ६ ३६ ग, घ )
वायुकाय का समारंभ प्रचुर पाप युक्त है। यह छहकाय के त्राता मुनियो के द्वारा आसेवित नहीं है ।
१५६ न ते वीइउमिच्छन्ति वीयावेऊण वा पर 1
(द ६ ३७ ग, घ )
इसलिए निर्ग्रन्थ वीजन आदि से हवा करना तथा दूसरो
से करवाना नहीं चाहते ।
१५७ न ते वायमुईरति जय परिहरति य ।
(द ६ ३८ ग, घ )
निर्ग्रन्थ वस्त्र आदि से वायु की उदीरणा नहीं करते, किन्तु यतनापूर्वक उनका परिभोग करते हैं ।
१५८
दोस दुग्गइवढ्ढण |
(द ६ ३६ ख )
वायुकाय का समारंभ दुर्गति-वर्धक दोष है ।
४२०