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श्रमण सूक्त
१२६ तम्हा पाणवह घोर निग्गथा वज्जयति ण ।
(द ६ १० ग, घ )
प्राण- वध को भयानक जानकर निर्ग्रन्थ वर्जन करते हैं।
१३०
नो वि अन्न वयावए ।
दूसरो से झूठ न बुलवाए ।
१३१
नायरति मुणी लोए भे याययणवज्जिणो
(द ६ ११ घ)
(द ६ १५ ग, घ )
चरित्र-भग के स्थान से बचने वाला मुनि अब्रह्मचर्य का
आसेवन नहीं करता ।
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