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श्रमण सूक्त
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१२२ तिव्वलज्ज गुणव विहरेज्जासि।
(द ५ (२) ५० घ) भिक्षु उत्कृष्ट सयम और गुण से सम्पन्न होकर विचरे।
१२३ गणिमागमसपन्न।
(द ६ १ ग) गणी आगम-सम्पदा से युक्त होते हैं।
१२४
सिक्खाए सुसमाउत्तो।
(द ६ ३ घ)
गणी शिक्षा मे समायुक्त होते हैं।
१२५
आयारगोयर भीम सयल दुरहिहिय।
(द ६ ४ ग, घ) मोक्षार्थी निर्ग्रन्थो का पूर्ण आचार का विषय भीम और दुर्धर होता है।
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