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श्रमण सूक्त
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११६ मज्जप्पमायविरओ तवस्सी अइउक्कसो।
(द ५ (२) ४२ ग, घ)
तपस्वी मद्य-प्रमाद से विरत होता है और गर्व नहीं
करता।
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११७ तस्स पस्सह कल्लाण अणेगसाहुपूइय।
(द ५ (२) ४३ क, ख)
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मेधावी तपस्वी के अनेक साधुओ द्वारा प्रशसित (विपुल और अर्थ-सयुक्त) कल्याण को स्वय देखो।
११८ एव तु गुणप्पेही आराहेइ सवर।
(द ५ (२) ४४ क, घ) इस प्रकार गुण की प्रेक्षा (आसेवना) करने वाला मुनि मरणान्तकाल मे भी सवर की आराधना करता है।
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