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आयरिए नाराहेइ समणे यावि तारिसो गिहत्था वि ण गरहति जेण जाणति तारिस ।।
(द ५ (२) ४०)
मद्यप-मुनि न तो आचार्य की आराधना कर पाता है और न अन्य श्रमणो की भी। गृहस्थ भी उसे मद्यप मानते है इसलिए उसकी गर्दा करते हैं।
GOGORO
११५ एव तु अगुणप्पेही गुणाण च विवज्जओ। तारिसो मरणते वि नाराहेइ सवर।।
___(द ५ (२) ४१)
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इस प्रकार अगुणो की प्रेक्षा (आसेवना) करने वाला और गुणो को वर्जने वाला मुनि मरणान्तकाल मे भी सवर की आराधना नहीं कर पाता।
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