________________
श्रमण सूक्त
श्रमण सुरु
-
૧૦૬ एवमन्नेसमाणस्स सामण्णमणुचिट्ठई।
(द ५ (२) ३० ग, घ) इस प्रकार समुदानचर्या का अन्वेषण करने वाले मुनि का श्रामण्य निर्बाधभाव से टिकता है।
-
११० दुत्तोसओ य से होइ निव्वाण च न गच्छई।
(द ५ (२) ३२ ग, घ) लोभी साधु जिस किसी वस्तु से सन्तुष्ट नहीं होता तथा निर्वाण को प्राप्त नहीं होता।
१११ सतुट्टो सेवई पत लूहवित्ती सुतोसओ।
(द ५ (२) ३४ ग, घ) आत्मार्थी मुनि सन्तुष्ट होता है, प्रान्त (असार) आहार का सेवन करता है, रूक्षवृत्ति और जिस किसी भी वस्तु से सन्तुष्ट होने वाला होता है।
४०५