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श्रमण सूक्त
१०६ मायने एसणारए ।
(द ५ (२) २६ घ )
मुनि मात्रा को जानने वाला हो, प्रासुक की एषणा मे रत
हो ।
१०७
बहु परघरे अस्थि विविह खाइमसाइम ।
न तत्थ पडिओ कुप्पे इच्छा देज्ज परो न वा ।
गृहस्थ के घर मे नाना प्रकार का और प्रचुर खाद्य-स्वाद्य होने पर भी गृहस्थ न दे तो पडित मुनि कोप न करे। यह सोचे- उसकी अपनी इच्छा है, दे या न दे।
१०८
वदमाणो न जाएज्जा ।
(द ५ (२) २७)
४०४
(द ५ (२) २६ ग )
मुनि वन्दना (स्तुति) करता हुआ याचना न करे ।