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१०० कह च न पबधेज्जा चिद्वित्ताण व सजए।
(द.५ (२) ८ ग, घ) गोचरी के लिए गया हुआ मुनि गृहस्थ के घर में खडा रहकर धर्म-कथा न कहे।
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त अइक्कमित्तु न पविसे न चिट्टे चक्खु-गोयरे। एगतमवक्कमित्ता तत्थ चिढेज्ज सजए।।
(द ५ (२) ११) गृहस्थ के घर पर आहार के लिए उपस्थित श्रमण ब्राह्मण, कृपण या वनीपक आदि को लाँधकर मुनि घर मे प्रवेश न करे। गृहस्वामी या श्रमण आदि की दृष्टि पहुंचे वहा भी खडा न रहे, किन्तु एकान्त मे जाकर खडा हो जाए।
૧૦૨ अप्पत्तिय सिया होज्जा लहुत्त पवयणस्स वा।
(द ५ (२) ०7 ग, घ) भिक्षाचरो को लाधकर घर में प्रवेश करने 7 अप्रेम हो . सकता है अथवा उससे प्रवचन-धर्म की लघुता होती है।
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