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श्रमण सूक्त
१०३ तओ तम्मि नियत्तिए उवसकमेज भत्तहा।
(द ५ (२) १३ ख, ग) वहा से भिक्षाचरो के चले जाने के पश्चात् सयमी मुनि आहार के लिए प्रवेश करे।
१०४
समुयाण चरे भिक्खू कुल उच्चावय सया। नीय कुलमइक्कम्म ऊसद नाभिधारए।
(द. ५ (२) : २५) मिक्षु सदा समुदान भिक्षा करे, उच्च और नीच समी ॥ कुलों में जाए। नीच कुल को छोड़कर उच्च कुल में न जाए।
१०५ अदीणो वित्तिमेसेज्जा न विसीएज्ज पडिए
(द ५ (२) २६ क, ख) मुनि अदीनभाव से वृत्ति (भिक्षा) की एषणा करे, न मिलने । पर विषाद न करे।