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श्रमण सूक्त
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नन्नत्थ एरिस वुत्त ज लोए परमदुच्चर।
(द ६ ५ क, ख) मानव-जगत् के लिए इस प्रकार का अत्यन्त दुष्कर आचार निर्ग्रन्थ दर्शन के अतिरिक्त कहीं नहीं कहा गया है।
१२७ विउलट्ठाणभाइस्स न भूय न भविस्सई।
(द६ ५ ग, घ) मोक्ष-स्थान की आराधना करने वाले के लिए ऐसा आचार अतीत मे न कहीं था और न कहीं भविष्य मे होगा।
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૧ર૦ अखडफुडिया कायव्वा।
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मुमुक्षुओ को गुणो की आराधना अखण्ड और अस्फुटित रूप से करनी चाहिए।
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