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श्रमण शुरु
श्रमण सूक्त
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उग्गम से पुच्छेज्जा।
(द ५ (१) ५६ क) सयमी मुनि गृहस्थ से आहार का उद्गम पूछे।
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७७ सोच्चा निस्सकिय सुद्ध पडिगाहेज्ज सजए।
(द ५ (१) ५६ ग, घ) दाता से प्रश्न का उत्तर सुनकर मुनि निशकित और शुद्ध आहार ले।
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७८
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पुष्फेसु होज्ज उम्मीस बीएसु हरिएसु वा। त भवे भत्तपाण तु सजयाण अकप्पिय ।।
(द ५ (१) ५७ ग, घ, ५८ क, ख) यदि भक्त-पान पुष्प, बीज और हरियाली से उन्मित्र हो तो वह भक्त-पान सयति के लिए अकल्पनीय होता है।
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