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श्रमण सूक्त
७१ ज जाणेज्ज सुणेज्जा वा दाणट्ठा पगड इम। त भवे भत्तपाण तु सजयाण अकप्पिय ।।
(द ५७) ४७ ग, घ, ४८ क, ख)
मुनि यह जान जाए या सुन ले कि भक्त-पान दानार्थ तैयार किया है तो वह भक्त-पान सयति के लिए अकल्पनीय होता है।
७२ ज जाणेज्ज सुणेज्जा वा पुण्णट्टा पगड इम। त भवे भत्तपाण तु सजयाण अकप्पिय ।।
(द ५ (१) ४६ ग, घ, ५० क, ख)
मुनि यह जान जाये या सुनले कि भक्त-पान पुण्यार्थ तैयार किया हुआ है तो वह भक्त-पान संयति के लिए अकल्पनीय होता है।