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श्रमण सूक्त
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उठ्ठिया वा निसीएज्जा निसन्ना वा पुणुझुए। त भवे भत्तपाण तु सजयाण अकप्पिय ।।
(द ५ (१) ४० ग, घ, ४१ क, ख) काल-मासवती गर्भिणी खडी हो और भिक्षा देने के लिए कदाचित् बैठ जाए अथवा बैठी हो और खड़ी हो जाए तो उसके द्वारा दिया जाने वाला भक्त-पान सयमियो के लिए अकल्प्य होता है।
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त निक्खिवित्तु रोयत आहरे पाणभोयण। त भवे भत्तपाण तु सजयाण अकप्पिय।।
(द ५ (१) ४२ ग, घ ४३ क, ख)
स्तनपान कराती हुई स्त्री, बालक या बालिका को रोता हुआ छोडकर भक्त-पान लाए, वह भक्त-पान सयति के लिए अकल्पनीय होता है।
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