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श्रमण सूक्त
साहवो तो चियत्तेण निमतेज्ज जहक्कम।
(८ ५ (१) ६५ क, ख) मुनि प्रेमपूर्वक साधुओ को यथाक्रम से भोजन के लिए निमन्त्रित करे।
५६
जइ तत्य केइ इच्छेज्जा तेहि सद्धि तु भुजए।
(द ५ (१) ६५ ग, घ)
निमन्त्रित साधुओ मे से यदि कोई साधु भोजन करना चाहे तो उनके साथ भोजन करे।
८७
अह कोई न इच्छेज्जा तओ मुजेज्ज एक्कओ।
(द ५ (१)
६६ क, ख)
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यदि कोई साधु भोजन करना न चाहे तो मुनि अकेला ही भोजन करे।
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