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श्रमण सूक्त
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आलोए भायणे साहू जय अपरिसाडय।
(द ५ (१) ६६ ग, घ) मुनि खुले पात्र मे यतनापूर्वक नीचे नहीं डालता हुआ भोजन करे।
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तित्तग व कडुय व कसाय अबिल व महुर लवण वा। एय लद्धमन्नट्ट-पउत्त महुधय व भुजेज्ज सजए।
(द ५ (१) ६७) गृहस्थ के लिए बना हुआ-तीता, कडुआ, कसैला, खट्टा, मीठा या नमकीन-जो भी आहार उपलब्ध हो उसे सयमी मुनि मधु-घृत की भाति खाये।
६० उप्पण नाइहीलेज्जा अप्प पि बहु फासुय।
(द ५ (१) ६६ क, ख) मुनि विधिपूर्वक प्राप्त आहार की निन्दा न करे। प्रासुक आहार अल्प या अरस होते हुए भी बहुत या सरस होता है।
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