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श्रमण सूक्त
अकप्पिय न इच्छेज्जा पडिगाहेज्ज कप्पिय।
(द ५ (१) २७ ग, घ)
मुनि अकल्पिक वस्तु न ले। कल्पिक ग्रहण करे।
६७ दिज्जमाण न इच्छेज्जा पच्छाकम्म जहि भवे।
(द ५ (१) ३५ ग, घ) जहा पश्चात-कर्म की सभावना हो वहा उन साधनो से दिया जाने वाला आहार मुनि न ले।
भुज्जमाण विवज्जेज्जा भुत्तसेस पडिच्छए।
(द ५ (१) ३६ ग, घ) अपने लिए बनाया हुआ आहार गर्भवती स्त्री खा रही हो तो मुनि उसका विसर्जन करे। खाने के बाद बचा हो वह ले।