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श्रमण सूक्त
६०
जत्थ पुप्फाइ बीयाइ विप्पइण्णाइ कोट्ठए ।
(द ५ (१) २१ क, ख )
जहाॅ कोष्ठक मे पुष्प, बीजादि बिखरे हो, वहाँ मुनि प्रवेश
न करे ।
६१
अहुणोवलित्त उल्ल दहूण परिवज्जए ।
(द ५ (१) २१ ग, घ )
कोष्ठक को तत्काल का लीपा और गीला देखे तो मुनि उसका परिवर्जन करे ।
६२
उल्लधिया न पविसे ।
विऊहित्ताण व सजए ।
३८८
(द ५ (१) २२ ग, घ )
मुनि पशु तथा बच्चे को लाघकर या हटाकर कोठे मे
प्रवेश न करे ।