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श्रमण सूक्त
५६
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कवाड नो पणोल्लेज्जा।
(द ५ (७) १८ ग) मुनि गृहस्वामी की अनुमति के बिना किवाड न खोले।
५७ वच्चमुत्त न धारए।
(द ५ (१) १६ ख) मुनि मल-मूत्र की बाधा को रोक कर न रखे।
५८
ओगास फासुयं नच्या अणुन्नविय वोसिरे।
(द ५ (७) १६ ग, घ) मुनि प्रासुक-स्थान को देख स्वामी की आज्ञा प्राप्त कर वहा मल-मूत्र का उत्सर्ग करे।
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नीयदुवारं तमस कोट्टग परिवज्जए।
(द ५ (१) २० क, ख) (प्राणी न देखे जा सकें वैसे) निम्न द्वार वाले अंधकारमय || कोष्ठक का मुनि परिवर्जन करे।
३८७.