________________
श्रमण सूक्त
४५
वज्जए वे ससाम त मुणी एग तमस्सिए।
(द ५ (१) ११)
एकान्त (मोक्ष-माग) का अनुगमन करने वाला मुनि वेश्याओं के वास-स्थान का वर्जन करे।
-
४६
सडिब्म कलह जुद्ध दूरओ परिवज्जए।
(द ५ (१) १२ ग, घ)
श्रमण, बच्चो के क्रीडास्थल, कलह और युद्ध (स्थान) को दूर से टालकर जाये।
४७
-
अणुन्नए नावणए अप्पहिढे अणाउले।
(द ५ (१) १३ क, ख) मुनि न ऊचा मुँह कर चले, न नीचा मुँह कर चले। न हृष्ट होता हुआ चले और न आकुल होकर चले।
-
-