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श्रमण सूक्त
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३७ वज्जतो बीयहरियाइ पागे य दगमट्टिय।
(द. ५ (१) ३ ग, घ) मुनि, सचित्त बीज, हरित, प्राणी, जल और मिट्टी से ॥ बचता हुआ चले।
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जयमेव परक्कमे।
सुसमाहित सयमी यतनापूर्वक गमन करे।
न चरेज्ज वासे वासते।
(द ५ (१) ८ क) मुनि वर्षा बरसते समय भिक्षा के लिए बाहर न जाए।
४० महियाए व पडतीए।
मुनि कुहरा पडते समय न विचरे।
४१ महावाए व वायते।
जोर से हवा चल रही हो उस समय मुनि न विचरे। .
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