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श्रमण
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तिरिच्छसपाइमेसु वा।
(द ५ (१) ८ घ) मार्ग मे तिर्यक् सपातिम जीव छा रहे हो मुनि उस समय न विचरे।
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न चरेज्ज वेससामते बभचेरवसाणुए। बभयारिस्स दतस्स होज्जा तत्थ विसोत्तिया।।
(द ५ (१) ६) ब्रह्मचर्य का वशवर्ती मुमुक्षु वेश्यावाडे के समीप न जाये। वहाँ दान्त, मन और इन्द्रियो को जीतने वाले ब्रह्मचारी के भी विस्रोतसिका हो सकती है।
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ससग्गीए अभिक्खण सामण्णम्मि य ससओ।
(द ५ (१)
१० ख, घ)
अस्थान में विचरने वाले पुरुष के वेश्याओ के ससर्ग के कारण आमण्य मे सन्देह हो सकता है।
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