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श्रमण सूक्त
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तया मुडे भवित्ताण पव्वइए अणगारिया
(द ४ १८ ग, घ) जब मनुष्य सर्व सयोगो को त्याग देता है तब वह मुंड होकर अनगार वृत्ति को स्वीकार करता है।
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तया सवरमुक्किट्ठ धम्म फासे अणुत्तरं।
(द १६ ग, घ)
जब मनुष्य अनगार-वृत्ति को स्वीकार कर लेता है तब वह उत्कृष्ट सवरात्मक अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है।
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तया लोगमलोग च जिणो जाणइ केवली।
(द ४
२२ ग, घ)
जब मनुष्य केवल ज्ञान और केवल दर्शन को प्राप्त कर लेता है तब वह जिन और केवली होकर लोक तथा अलोक को जान लेता है।
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