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आयावयाही चय सोउमल्ल ।
(द २ ५ क) विषय-वासना को दूर करने के लिए स्वय को तपाओ तथा सुकुमारता का त्याग करो।
मा कुले गन्धणा होमो।
(द २ ८ ग) हम कुल मे गन्धन (वमे हुए विष को पीने वाले) सर्प की तरह न हो।
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सजम निहुओ चर।
(द २ ८ घ) तुम निभृत-स्थिर मन हो सयम का पालन करो।
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वायाइद्धो व्व हडो, अट्ठियप्पा भविस्ससि।
(द २ ६ ग, घ) यदि तू स्त्रियो के प्रति राग-भाव करता रहेगा तो वायु से आहत हट जलीय वनस्पति, सेवाल की तरह अस्थितआत्मा हो जायेगा।
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