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श्रमण सूक्त
हेमतेसु अवाउडा।
(द ३ १२ ख) वे हेमन्त-शीतकाल मे, खुले बदन रहते हैं।
वासासु पडिसलीणा।
(द ३ १२ ग) वे वर्षा में प्रतिसलीन रहते हैं-एक स्थान में रहते हैं-विहार नहीं करते।
१७ सजया सुसमाहिया।
(द ३ १२ घ)
निर्ग्रन्थ सुसमाहित होते हैं।
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१८ परीसहरिऊदता धुयमोहा जिइदिया।
(द ३ १३ क, ख) अमण परिषह रूपी रिपुओं का दमन करने वाले, धुतमोह और जितेन्द्रिय होते हैं।
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