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श्रमण सूक्त
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इइ जीवमजीवे य
सोच्चा सद्दहिऊण य ।
सव्वनयाण अणुमए
रमेज्जा सजमे मुणी ||
( उत्त ३६ २४६ )
जीव और अजीव के स्वरूप को सुनकर, उसमे श्रद्धा उत्पन्न कर मुनि ज्ञान-क्रिया आदि सभी नयो के द्वारा अनुमत सयम मे रमण करे ।
गोचरी के लिए गया हुआ मुनि गृहस्थ के घर मे न बैठे।
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