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श्रमण सूक्त
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अच्चणं रयणं चैव
वंदणं पूयणं तहा।
इड्डीसक्कारसम्माणं
मणसा वि न पत्थए । 1
(उत्त. ३५ :
३६६
१८)
मुनि अर्चना, रचना ( अक्षत, मोती आदि का स्वस्तिक बनाना), वन्दना, पूजा, ऋद्धि, सत्कार और सम्मान की मन से भी प्रार्थना (अभिलाषा) न करे।