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श्रमण सूक्त
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न सय गिहाइ कुज्जा
णेव अन्नेहि कारए। गिहकम्मसमारभे
भूयाण दीसई वहो।।
तसाण थावराण च
सुहमाण बायराण य। तम्हा गिहसमारभ संजओ परिवज्जए।।
(उत्त ३५ ८, ६)
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भिक्षु न स्वय घर बनाए और न दूसरो से बनवाए। गृहनिर्माण के समारभ (प्रवृत्ति) मे जीवो-वस और स्थावर, सूक्ष्म और बादर का वध देखा जाता है। इसलिए सयत भिक्षु गृह समारम्भ का परित्याग करे।