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श्रमण सूक्त
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भिक्खियव्वं न केयव्वं
भिक्खुणा भिक्खवत्तिणा ।
कयविक्कओ महादोसो
भिक्खावत्ती सुहावहा । ।
(उत्त ३५ १५)
भिक्षावृत्ति वाले भिक्षु को भिक्षा ही करनी चाहिए, क्रयविक्रय नहीं । क्रय-विक्रय महान् दोष है। भिक्षा-वृत्ति सुख को देने वाली है।
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