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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
३५३)
सुसाणे सुन्नगारे वा
रुक्खमूले व एक्कओ। पइरिक्के परकडे वा वास तत्थभिरोयए।।
(उत्त ३५ ६)
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एकाकी भिक्षु श्मशान मे, शून्यगृह मे, वृक्ष के मूल मे अथवा परकृत एकान्त स्थान मे रहने की इच्छा करे।
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