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श्रमण सूक्त
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३५१
मणोहरं चित्तहरं
मल्लधूवेण वासिय। सकवाडं पडुरुल्लोय मणसा वि न पत्थए।।
(उत्त ३५ ४)
जो स्थान मनोहर चित्रो से आकीर्ण, माल्य और धूप से सुवासित, किवाड सहित, श्वेत चन्दवा से युक्त हो, वैसे स्थान की मन से भी अभिलाषा न करे।
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