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श्रमण सूक्त
श्रमण सूक्त
३४६)
गिहवास परिच्चज्ज
पवज्ज अस्सिओ मुणी। इमे संगे वियाणिज्जा जेहिं सज्जति माणवा।।
(उत्त ३५
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२)
जो मुनि गृह-वास को छोडकर प्रव्रज्या को अगीकार कर चुका, वह उन सगो (लेपो) को जाने, जिनसे मनुष्य सक्त (लिप्त) होता है।
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