________________
-
SIL_ श्रमण सूक्त
-
३४४
फासे विरत्तो मणुओ विसोगो
एएण दुक्खोहपरपरेण। न लिप्पए भवमझे वि सतो जलेण वा पोक्खरिणीपलासं।।
(उत्त ३२ : ८६)
स्पर्श से विरक्त मनुष्य शोकमुक्त बन जाता है। जैसे कमलिनी का पत्र जल मे लिप्त नहीं होता, वैसे ही वह संसार मे रहकर अनेक दुखो की परपरा से लिप्त नहीं होता।
-
ma
-
३४६
- -