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श्रमण सूक्त
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रसे विरतो मणुओ विसोगो एएण दुक्खोहपरपरेण ।
न लिप्पए भवमज्झे वि सतो जलेण वा पोक्खरिणीपलास ।। (उत्त ३२ ७३)
रस से विरक्त मनुष्य शोकमुक्त बन जाता है । जैसे कमलिनी का पत्र जल मे लिप्त नहीं होता, वैसे ही वह संसार मे रहकर अनेक दुखो की परपरा से लिप्त नहीं होता ।
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