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सद्देविरत्तो मणुओ विसोगो
एएण दुक्खोहपरपरेण। न लिप्पए भवमझे वि सतो जलेण वा पोक्खरिणीपलास।।
(उत्त ३२ ४७)
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शब्द से विरक्त मनुष्य शोकमुक्त बन जाता है। जैसे कमलिनी का पत्र जल मे लिप्त नहीं होता, वैसे ही वह ससार मे रह कर अनेक दुखो की परपरा से लिप्त नहीं होता।
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