________________
-
श्रमण सूक्त
-
(३३६
एगतरत्ते रुइरसि गधे
अतालिसे से कुणई पओस। दुक्खस्स सपीलमुवेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो।।
(उत्त ३२ ५२)
जो मनोहर गन्ध मे एकान्त अनुरक्त होता है और अमनोहर गध मे द्वेष करता है, वह अज्ञानी दुखात्मक पीडा को प्राप्त होता है। इसलिए विरक्त मुनि उनमे लिप्त नहीं होता।
-
-
2
३४१
Jan- -