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श्रमण सूक्त
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एगतरत्ते रुइरसि रूवे
अतालिसे से कुणई पओस । दुक्खस्स सपीलमुर्वेइ बाले न लिप्पई तेण मुणी विरागो।।
(उत्त ३२ २६)
जो मनोहर रूप मे एकान्त अनुरक्त होता है और अमनोहर रूप में द्वेष करता है, वह अज्ञानी दुखात्मक पीड़ा को प्राप्त होता है। इसलिए विरक्त मुनि उनमें लिप्त नहीं होता।
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