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श्रमण सूक्त
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(३३०
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आहारमिच्छे मियमेसणिज्ज
सहायमिच्छे निउणत्थबुद्धि । निकेयमिच्छेज्ज विवेगजोग्ग समाहिकामे समणे तवस्सी।।
(उत्त ३२
४)
समाधि चाहने वाला तपस्वी श्रमण परिमित और एषणीय आहार की इच्छा करे। जीव आदि पदार्थ के प्रति निपुण बुद्धि वाले गीतार्थ को सहायक बनाए और विविक्त-एकान्त घर मे रहे।
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