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श्रमण सूक्त
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एयाओ पच एमिईओ
चरणस्स य पवत्तणे। गुत्ती नियत्तणे वुत्ता
असुभत्थेसु सव्वसो।। एया पवयणमाया
जे सम्म आयरे मुणी। से खिप्पं सव्वसंसारा विप्पमुच्चई पंडिए।।
(उत्त. २४ : २६, २७)
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पांच समितियां चरित्र की प्रवृत्ति के लिए हैं और तीन गुप्तियां सब अशुभ विषयो से निवृत्ति करने के लिए हैं।
जो पण्डित मुनि इन प्रवचन-माताओं का सम्यक् आचरण करता है, वह शीघ्र ही भव-परंपरा से मुक्त हो जाता है।
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