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श्रमण सूक्त
(४) एक कार्य से दूसरा कार्य करते समय प्रतिपृच्छा करे-गुरु से पुन अनुमति ले ।
(५) पूर्व गृहीत द्रव्यो से छदना करे - गुरु आदि को निमन्त्रित करे ।
(६) सारणा ( औचित्य से कार्य करने और कराने) में इच्छाकार का प्रयोग करे -- आपकी इच्छा हो तो मैं आपका अमुक कार्य करू | आपकी इच्छा हो तो कृपया मेरा अमुक कार्य करे ।
(७) अनाचरित की निन्दा के लिए मिथ्याकार का प्रयोग करे ।
(८) प्रतिश्रवण ( गुरु द्वारा प्राप्त उपदेश की स्वीकृति) के लिए तथाकार ( यह ऐसे ही है) का प्रयोग करे।
(६) गुरु-पूजा (आचार्य, ग्लान, बाल आदि साधुओ) के लिए अभ्युत्थान करे- आहार आदि लाए।
(१०) दूसरे गण के आचार्य आदि के पास रहने के लिए उपसम्पदा ले --मर्यादित काल तक उनका शिष्यत्व स्वीकार करे । इस प्रकार दस, विध सामाचारी का निरूपण किया गया है।
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