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श्रमण सूक्त
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निग्गथो धिइमतो
निग्गथो वि न करेज्ज छहि चेव । ठाणहि उ इमेहि।
अणइक्कमणा य से होइ।। आयके उवसग्गे
तितिक्खया बमचेरगुत्तीसु। पाणिदया तवहेउ सरीरवोच्छेयणढाए।।
(उत्त २६ ३३. ३४)
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धृतिमान् साधु और साध्वी इन छह कारणो से भक्त-पान की गवेषणा न करे, जिससे उनके सयम का अतिक्रमण न हो। रोग होने पर, उपसर्ग आने पर, ब्रह्मचर्य गुप्ति की तितिक्षा (सुरक्षा) के लिए, प्राणियो की दया के लिए, तप के लिए और शरीर-विच्छेद के लिए मुनि भक्त-पान की गवेषणा न करे।
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